जयपुर, 14 सितंबर। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (DJJS) द्वारा आयोजित मासिक सत्संग-समागम का आयोजन श्री रामचन्द्र मंदिर, बड़ी चौपड़, जयपुर में गहन श्रद्धा और उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। आने वाली नवरात्रि की पावन आहट ने इस आयोजन को और अधिक महत्त्वपूर्ण बना दिया।
साध्वी लोकेशा भारती ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा -सच्ची दुर्गा पूजा का अर्थ केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपने भीतर की नकारात्मकताओं को समाप्त कर दिव्यता को जागृत करना है। नवरात्रि हमें आत्मशक्ति और सद्गुणों को अपनाने का श्रेष्ठ अवसर प्रदान करती है। जब हम मन, वचन और कर्म से माँ की आराधना करते हैं, तभी जीवन में शांति और संतुलन स्थापित होता है। आज हम अनेक मनभावन तरीकों से माँ जगदम्बा का भजन-पूजन करते हैं—कीर्तन, जगराता, तीर्थ यात्रा, व्रत-उपवास, ज्योति प्रज्वलन, आरती। ये सभी विधियाँ माँ के प्रताप को समाज में प्रतिष्ठित करती हैं, माँ की महिमा को बढ़ाती हैं। परन्तु क्या ये पद्धतियाँ हमारी मईया रानी को पूर्ण प्रसन्न भी करती हैं? इसे समझने के लिए आवश्यक है कि हम ‘माँ को’ मानने के साथ-साथ ‘माँ की’ भी मानें। माँ स्वयं क्या कहती हैं, कौन सा विधि-विधान उन्हें प्रिय है—यह जानना अनिवार्य है
उन्होंने देवी पुराण का उल्लेख करते हुए कहा—“देवी पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, गिरिराज हिमालय और उनकी पत्नी मेना ने देवी दुर्गा को पुत्री-रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ एक विराट ज्योतिपुंज के रूप में प्रकट हुईं और फिर एक मनोहर कन्या के रूप में साकार हुईं। देवी का यह अद्भुत दर्शन पाकर हिमालय ने विनम्रता से प्रार्थना की—‘हे परमेश्वरी! मुझे भक्ति-मुक्ति-योग और स्मृति-सम्मत ज्ञान की प्राप्ति कराइए।’
माँ ने उनके अनुरोध पर अपने तत्त्व स्वरूप का रहस्य उजागर करते हुए कहा कि हे हिमालय मैं शाश्वत ज्ञान की मूर्ति हूँ। मेरा वास न तीर्थों में है, न कैलाश में, न ही बैकुण्ठ में। मैं तो अपने ज्ञानी-भक्तों के हृदय-कमल में ही निवास करती हूँ। इसके पश्चात् माँ ने हिमालय को दिव्य चक्षु प्रदान किए और अपने ज्योतिर्मय, माहेश्वरस्वरूप का दर्शन कराया।
मंत्रोच्चार, भक्ति संगीत और ध्यान साधना से वातावरण दिव्य ऊर्जा से ओत-प्रोत हो उठा। सत्संग के उपरांत विशाल भंडारा प्रसादी का आयोजन हुआ, जिसमें दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। मंदिर प्रांगण जय माँ दुर्गा के जयकारों से गूंज उठा। इस तरह के मासिक सत्संग-समागम समाज को न केवल आध्यात्मिक दिशा देते हैं, बल्कि लोगों में सकारात्मक परिवर्तन और सामूहिक सद्भाव का संचार भी करते हैं।
