
मोहित शर्मा/करौली. पूर्वी राजस्थान के करौली में वैसे तो राजाशाही जमाने में पेयजल आपूर्ति के लिए दर्जनों कुओं का निर्माण तत्कालीन राजाओं द्वारा कराया गया था. लेकिन प्राचीन जमाने में प्यास बुझाने का साधन कहे जाने वाले इस कुएं का एक ऐसा अद्भुत नमूना करौली के राजौर नामक गांव में देखने को मिलता है. जो प्राचीन समय से ही लोगों की प्यास बुझाने के साथ-साथ नायाब भित्ति शिल्प कला का भी अद्भुत नमूना है.
इतना ही नहीं सूरज सागर नाम से पहचान रखने वाले इस कुएं में कई देवी-देवताओं के भी दर्शन मिलते हैं. यही वजह है कि राजौर गांव में बना यह सूरज सागर नाम का कुआं अपनी अनेक विशेषताओं के चलते अन्य कुओं के बजाय अपने एक विशेष पहचान रखता है.
18 वीं सदी में हुआ निर्माण
ऐसा कहा जाता है कि इस कुआं का निर्माण 18 वीं सदी में अकाल पड़ने के दौरान तत्कालीन राजा प्रताप पाल की रानी राजावती द्वारा कराया गया था. स्थानीय निवासी आशीष पाल का कहना है कि उस समय के अकाल पीड़ितों के लिए पानी और रोजगार की व्यवस्था के लिए इस अनोखे सुरज सागर कुएं का निर्माण कराया गया था.
शानदार भित्ति शिल्पकला है कुएं की
प्राचीन समय से लेकर आज तक प्यास बुझाने वाला सूरज सागर नाम का कुआं वाकई में एक अद्भुत जल का स्रोत है. राजाशाही जमाने के इस कुएं में मलयुद्ध, शिकार और कई देवी-देवताओं के भित्ति शिल्प भी देखने को मिलते हैं. सही मायने में कहां जाए तो इस कुएं में पानी के साथ-साथ कई देवी देवताओं के भी दर्शन मिलते हैं.
अब खेतों की प्यास बुझाता है यह कुआं
सुरज सागर नाम का करीब 200 वर्ष से भी ज्यादा पुराना यह कुआं पहले लोगों की तो अब गांव के खेतों की प्यास बुझा रहा है. गांव के स्थानीय निवासी प्रेमशंकर शर्मा का कहना है कि वर्तमान समय में इस कुएं के पानी का उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए किया जाता है.
उनका यह भी कहना है कि हमारे गांव का रियासतकाल का यह कुआं वाकई में देखने लायक है. लाल पत्थर से पक्की चिनाई में बने इस कुएं में देवी देवताओं की पत्थर में प्रतिमा उकरी हुई है. इसीलिए हमारे गांव के सुरज सागर कुआं को जों भी देखता है, देखता ही रह जाता है.
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FIRST PUBLISHED : July 27, 2023, 20:48 IST
