जयपुर, 27 मार्च । लम्बे इंतजार के बाद 25 मार्च से प्रदेश में आरटीई के तहत एडमिशन प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। फिलहाल अभी यह प्रक्रिया 7 अप्रैल तक चलेगी किंतु इस प्रक्रिया में अधिक से अधिक बालक – बालिकाओं को अवसर मिल सके इसको लेकर संयुक्त अभिभावक संघ ने कुछ प्रमुख मांगे राज्य सरकार के समक्ष रखी है जिसमें एक मांग यह रखी है कि आरटीई के तहत एडमिशन केवल 7 अप्रैल तक रखी गई है जिसे बढ़ाकर 20 अप्रैल तक किया जाए। साथ ही निजी विद्यालयों में आरटीई की प्रक्रिया को लेकर विशेष टेबल की व्यवस्था करवाई जाए जिसके माध्यम से जरूरतमंद अभिभावकों को आरटीई की समुचित जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके।
प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि जब से देश में आरटीई की व्यवस्था लागू हुई है तब से बालक – बालिकाओं को फायदा तो मिला लेकिन जितना फायदा पहुंचाने को लेकर यह एक्ट लाया गया था वह केवल जटिल प्रक्रियाओं के चलते जरूरतमंदों को फायदा नहीं पहुंच रहा है जिस पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार को गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए और राइट टू एजुकेशन बिल में संशोधन करना चाहिए क्योंकि जब यह बिल आया था तब से लेकर प्रक्रिया को केवल जटिल से जटिल बनाने की दिशा में तो बहुत बदलाव किए गए। सरकार हर साल इनकम टैक्स में छूट लगातार बढ़ा रही है अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने इनकम टैक्स 12 लाख रु तक की छूट दी है, जबकि आरटीई प्रक्रिया में वर्ष 2011 से अभी तक कोई बदलाव नहीं किया, 2011 में आरटीई में एडमिशन को लेकर ढाई लाख तक इनकम वालों को छूट दी गई थी, जो आजतक चलती आ रही है |
संघ ने राज्य सरकार से मांग कि आरटीई में भी छूट की सीमा को बढ़ाया जाए और इस छूट की सीमा कम से कम ई.डब्ल्यू.एस कैटेगरी तक की जाएं। साथ ही संघ यह मांग करता है कि वार्ड परिसीमन प्रमाण पत्र की बाध्यता हो भी हटाया जाए, क्योंकि इसकी बाध्यता के कारण अधिक बालक – बालिकाएं शिक्षा से वंचित हो जाती और अभिभावकों को ठोकरें खाने पर मजबूर होना पड़ता है, वार्ड परिसीमन प्रक्रिया को सेल्फ अटेस्टेड को प्राथमिकता दी जाए क्योंकि हर पांच साल में वार्डो का परिसीमन राज्य सरकार के अनुसार होता रहता है जिसके कारण अभिभावक कंफ्यूजन में रहते है और अपडेशन नहीं करवा पाता है और दूसरा सबसे अहम कारण डॉक्यूमेंट अपडेशन में भी मनमानी झेलनी पड़ती है। इसलिए संयुक्त अभिभावक संघ यह मांग करते है कि अगर सरकार विद्यार्थियों की साक्षरता दर को बढ़ाने की मंशा रखती है उन्हें अच्छी शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध करवाना चाहिए है तो अभिभावकों की समस्याओं का भी समाधान करें, केवल निजी विद्यालयों के सुझावों पर अमल कर बालक – बालिकाओं को शिक्षा से वंचित रखने की योजनाओं को लागू ना करें।